प्राणायाम कैसे करें How To Do Pranayam In Hindi :-
प्राणायाम का अर्थ :-
प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ 'प्राण का आयाम अर्थात् विस्तार' होता है। प्राणायाम की परिभाषा देते हुए महर्षि पतंजलि ने 'पातंजल योगसूत्र' के साधनपाद के 49 वें सूत्र में लिखा है : 'तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः' अर्थात् श्वासोच्छ्वास की गति का विच्छेद करके प्राण को रोकने का नाम ही प्राणायाम है। कई लोगों के मतानुसार 'प्राण' शब्द का अर्थ केवल 'वायु ' ही होता है। किन्तु यह मत भ्रामक है। प्राण शब्द का अर्थ 'वायु ' की अपेक्षा अधिक व्यापक है। वास्तव में प्राण तो वह प्राणशक्ति या जीवनशक्ति (Vital Power) है जो स्थूल पृथ्वी पर प्रत्येक वस्तु का संचालन करती हुई दिखाई देती है और इस विश्व में विचार-रूप में स्थित है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो प्राण का सम्बन्ध मन से, मन का सम्बन्ध बुद्धि से, बुद्धि का सम्बन्ध आत्मा से और आत्मा का सम्बन्ध परमात्मा से है। इस प्रकार प्राणायाम का उद्देश्य शरीर में व्याप्त प्राणशक्ति को उत्प्रेरित, संचारित, नियमित और सन्तुलित करना है। यही कारण है कि प्राणायाम को योगविज्ञान का एक अमोघ साधन माना गया है।
प्राणायाम का महत्व :-
योगशास्त्र में प्राणायाम को बड़ा महत्व दिया गया है। व्यासभाष्य में कहा गया है : 'तपो न परं प्राणायामात्। ततो विशुद्धिर्मलानां दीप्तिश्च ज्ञानस्य।' अर्थात् प्राणायाम से महान कोई तप नहीं है। इससे मल दूर होता है और ज्ञान का उदय होता है। मनु ने भी कहा है:
दह्यन्ते ध्मायमानानां धातूनां हि यथा मलाः।
तथेन्द्रियाणां दह्यन्ते दोषाः प्राणस्य निग्रहात्।
अर्थात् जिस प्रकार अग्नि में सोना आदि धातुएँ गलाने से उनका मैल दूर होता है, उसी प्रकार प्राणायाम करने से शरीर की इन्द्रियों का मल दूर होता है। महर्षि पतंजलि द्वारा बताए गए अष्टांग योग का यह चौथा और महत्वपूर्ण अंग है। यदि कोई योग प्राणायाम का बहिष्कार करे तो वह योग ही नहीं रहेगा। इसीलिए प्राणायाम योग की आत्मा कहलाता है। जिस प्रकार शरीर की शुद्धि के लिए स्नान की आवश्यकता है, ठीक उसी प्रकार मन की शुद्धि के लिए प्राणायाम की आवश्यकता पड़ती है।
लाभ :-
(1) प्राणायाम से शरीर स्वस्थ और निरोगी रहता है और अतिरिक्त मेद कम हो जाता है।
(2) प्राणायाम से दीर्घ आयु प्राप्त होती है, स्मरणशक्ति बढ़ती है और मानसिक रोग दूर होते हैं।
(3) प्राणायाम से पेट, यकृत, मूत्राशय, छोटी-बड़ी दोनों आंतें और पाचनतंत्र भलीभाँति प्रभावित होते हैं और कार्यक्षम बनते हैं।
(4) प्राणायाम से नाड़ियाँ शुद्ध होती हैं और शारीरिक सुस्ती दूर होती है।
(5) प्राणायाम से जठराग्नि प्रदीप्त होती है, शरीर स्वस्थ बनता है और अन्तर्नाद सुनाई देने लगता है।
(6) प्राणायाम के निरन्तर अभ्यास से ज्ञानतंत्र को शक्ति मिलती है, मन की चंचलता दूर होती है और मन एकाग्र होने लगता है।
(7) प्राणायाम के निरन्तर अभ्यास से आध्यात्मिक शक्ति जाग्रत होती है। यह आत्मानन्द, आत्मप्रकाश और मानसिक शान्ति प्रदान करता है।
(8) प्राणायाम करनेवाला सांधक ब्रह्मचर्य-पालन के लिए तैयार होता है और सच्चे अर्थ में ब्रह्मचारी बनता है।
आवश्यक सूचनाएँ :-
अच्छी तरह और प्रभावी ढंग से प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए प्राणायाम करनेवाले साधक को निम्नलिखित सूचनाओं का पांलन दृढ़तापूर्वक करना चाहिए :
(1) प्राणायाम करने का स्यान ऐसा हो जहाँ एकान्त हो और हवा का आवागमन भलीभौंति होता हो।
(2) प्राणायाम करने का सर्वश्रेष्ठ समय प्रात:काल माना जाता है। यदि किसी कारण से प्रात:काल में प्राणायाम करना संभव न हो तो सायंकाल में भी प्राणायाम किया जा सकता है।
(3) प्राणायाम का अभ्यास बहुधा पद्मासन अथवा सिद्धासन में बैठकर करना चाहिए; किन्तु यदि इन आसनों में लम्बे समय तक बैठने में कठिनाई मालूम होती हो तो स्थिर वैठा जा सके ऐसा अन्य कोई भी आसन पसन्द किया जा सकता है।
(4) उत्तम तरीके से प्राणायाम करने के लिए नाड़ियों का शुद्ध होना अत्यावश्यक है। इसीलिए कहा गया है: 'नाडीशुद्धि च तत्पश्चात् प्राणायाम च साधयेत्।' अर्थात् नाड़ीशुद्धि करने के बाद प्राणायाम की साधना करें। इसके लिए पहले आसनों का अभ्यास करें।
(5) प्राणायाम निश्चित समय पर, नियमित रूप से और भूखे पेट ही करना चाहिए। अभ्यास के अन्त में दस मिनट के बाद एक छोटा प्याला दूध का सेवन किया जाए तो अच्छा रहेगा।
(6) इतना प्राणायाम कभी न करें कि थकावट का अनुभव हो । प्राणायाम के बाद शरीर में ताजगी और फुर्ती उत्पन्न होनी चाहिए।
(7) प्राणायाम के तुरंत बाद स्नान न करें। आधा घण्टा आराम करने के बाद स्नान करें । (स्नान के पश्चात् प्राणायाम करना अधिक श्रेयस्कर है।
(8 साँस हमेशा बहुत धीमे से लें और छोड़े-ऐसा महर्षि पतंजलि ने कहा है। ऐसा करने से मन स्थिर और शान्त बनता है।
(9) नये साधकों को प्रारंभ में कुछ दिनों तक केवल पूरक और रेचक का ही अभ्यास करना चाहिए। पूरक और रेचक में क्रमश: एक और दो मात्राओं का हिसाब रखें। अर्थात् पूरक में जितना समय लगता है उससे दूना समय रेचक में होना चाहिए।
(10) कुंभक का समय धीरे-धीरे बढ़ाइए। पहले सप्ताह में केवल चार सेकण्ड, दूसरे सप्ताह में आठ सेकण्ड और तीसरे सप्ताह में बारह सेकण्ड तक साँस रोकने का अभ्यास करें। इस प्रकार क्रमश: बढ़ाते हुए अपनी पूरी शक्ति के प्रमाण में आराम से साँस रोकने का अभ्यास करें।
(11) पूरक, कुंभक और रेचक का अभ्यास ऐसी खूबी के साथ करें कि अभ्यास की किसी भी अवस्था में साँस की घुटन का अनुभव न हो अथवा किसी भी प्रकार के कष्ट का अनुभव न हो।
(12) पूरक, कुंभक और रेचक के लिए 1:4:2 का अनुपात रखें। एक ॐकार का उच्चारण करते समय तक साँस भर लीजिए। चार ॐकारों के उच्चारण-काल तक साँस रोकें और दो ॐकार के उच्चारण करते-करते उच्छवास के रूप में साँस निकालें। दूसरे सप्ताह 2: 8:4, तीसरे सप्ताह 3 : 12 : 6 और इस प्रकार बढ़ते हुए 16 : 64 : 32 के अनुपात तक पहुँचें । बाएँ हाथ की उँगलियों का उपयोग ॐकार की गणना करने में करें। अभ्यास में आगे बढ़ने के बाद गणना करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अभ्यस्त हो जाने पर इस अनुपात का निर्वाह अपने आप ही हो जाता है।
(13) शुरूआत में कुछ भूलें होंगी; किन्तु उसकी चिन्ता न करें । व्यर्थ घबराइए नहीं। अभ्यास छोड़ न दें। क्रमश: पूरक, कुंभक और रेचक कैसे प्राप्त करें यह आपको धीरे-धीरे अपने आप समझ में आ जाएगा । सामान्य बुद्धि, अन्तःकरण की सूझ-बूझ और आत्मा की आवाज सिद्धि का मार्ग बताएगी।
(14) सूर्य-भेदन तथा उज्जायी शीतकाल में ही करने चाहिए। सीत्कारी एवं शीतली गर्मियों में ही करने चाहिए। भस्मिका सभी ऋतुओं में किया जा सकता है।
प्राणायाम के महत्वपूर्ण अंग :-
प्राणायाम करनेवाले साधक को प्राणायाम से सम्बन्धित महत्वपूर्ण बातें समझ लेना आवश्यक है।
(1) प्राणायाम की विधि
(2) पूरक, रेचक और कुंभक
(3) इडा, पिंगला और सुषुम्णा नाड़ियाँ
(4) मूल बन्ध, जालंधर बन्ध और उड़ीयान बन्ध
(5) नाड़ी-शुद्धि
(6) कपालभाती
प्राणायाम के इन महत्वपूर्ण अंगों की यहाँ संक्षिप्त जानकारी दी गई है।
(1) प्राणायाम की विधि :-
प्राणायाम करने के लिए नाक के बाएँ और दाएँ नासापुट बन्द करने पड़ते हैं अधिकांशत: दाएँ हाथ से यह काम किया जाता है। अर्थात् दाएँ हाथ के अंगूठे का उपयोग दाएँ नासापुट को बन्द करने में और अनामिका एवं कनिष्ठिका (अंगूठे से क्रमश: तीसरी और चौथी उंगली) का उपयोग बाएँ नासापुट को वन्द करने में होता है। जब नासापुटों को पकड़ने की आवश्यकता न हो तब दोनों हाथ घुटनों पर रखें। प्राणायाम करने के लिए यथासंभव पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन और सुखासन का उपयोग करें :
(2) पूरक, रेचक और कुंभक : प्राणायाम के इन तीन प्रमुख अंगों के अर्थ निम्नलिखित हैं :
पूरक : साँस अन्दर लेना।
रेचक : साँस बाहर छोड़ना।
कुभक : साँस रोकना।
साँस लेकर उसे रोकने की क्रिया को 'आंतरिक कुंभक' और साँस बाहर निकालकर रोकने की क्रिया को 'बाह्य कुंभक' कहा जाता है। इसी प्रकार रेचक और पूरक से युक्त हो उसे 'सहित कुंभक' और रेचक-पूरक रहित हो उसे 'केवल कुंभक' कहा जाता है। जहाँ तक केवल कुंभक सिद्ध न हो, वहाँ तक सहित कुंभक का अभ्यास करना चाहिए। केवल कुंभक को सर्वश्रेष्ठ प्राणायाम माना जाता है। इड़ा, पिंगला और सुषुम्णा : ये तीन प्राणवाहक नाड़ियाँ हैं। इन तीनों के देवता क्रमश: चन्द्र, सूर्य और अग्नि हैं। इड़ा बीएँ नासापुट द्वारा और पिंगला दाएँ नासापुट द्वारा बहती है और सुषुम्णा नाक के दोनों नासापुटों द्वारा बहती है। इसलिए इसे 'मध्यनाड़ी' कहा जाता है। प्रति घण्टे बाई (इड़ा) और दाई (पिंगला) नाड़ियाँ स्वर बदलती रहती हैं।
इड़ा नाड़ी को चन्द्रनाड़ी भी कहा जाता है। वह शीतल और तम:प्रधान है। यह नाड़ी व्यक्ति के विचारों का नियंत्रण करती है।
पिंगला नाड़ी को सूर्यनाड़ी भी कहा जाता है। वह उष्ण और रज:प्रधान है। यह नाड़ी व्यक्ति की प्राणशक्ति का नियंत्रण करती है।
सुषुम्णा नाड़ी को ब्रह्मनाड़ी भी कहा जाता है। नाड़ीमण्डल में सुषुम्णा सबसे अधिक महत्वपूर्ण नाड़ी है। कुछ ग्रंथों में इसे 'सरस्वती' और 'शान्ति' नाड़ी भी कहा गया है। यह नाड़ी न तो उष्ण है और न शीतल, किन्तु दोनों के बीच संतुलन बनाए रखती है। इस नाड़ी से प्रकाश तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है। यह नाड़ी साधक को उसकी आध्यात्मिक उन्नति में सहायता करती है।
शारीरिक दृष्टि से इन तीन नाड़ियों के बीच का संतुलन, स्वास्थ्य, वल, शान्ति और दीर्घायु प्रदान करता है।
(4) मूलबन्ध, जालंधरबन्ध और उड्डीयानबन्ध : प्राणायाम के दौरान मुख्यतः इन तीन बन्धों का उपयोग किया जाता है। नीचे इन तीनों की पद्धतियाँ और उनके लाभ दिखाए गए हैं :
मूलबन्ध पद्धति :-
दाएँ पैर की एड़ी से सीवनी को दबाकर, बाएँ पैर की एड़ी को जननेन्द्रिय के मूल पर रखिए। गुदा को संकुचित करके बलपूर्वक मेरुदण्ड की ओर आकर्षित करके ऐसी भावना कीजिए जैसे आप अपानवायु को ऊपर की ओर चढ़ा रहे हों। इसी प्रकार दाएँ पैर के स्थान पर बाएँ पैर का उपयोग भी किया जा सकता है।
![]() |
Pranayam in Hindi |
![]() |
How To Do Pranayam In Hindi |
पद्धति :-
2 Comments
apka post bahut hi accha laga sir
ReplyDeleteNo Online Casinos in the UK - NoVasino
ReplyDeletePlay online casino novcasino games in the UK. aprcasino.com No deposit free spins & bonus https://shootercasino.com/emperor-casino/ offers for aprcasino UK online casinos. poormansguidetocasinogambling No deposit bonuses & free spins.
Post a Comment